Saturday, May 23, 2009

कुशल पेशेवरों ने छोटी कंपनियों की पकड़ी राह

कारोबार और बिजनेस की दुनिया में समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। छोटे एवं मझोले कारोबारियों के लिए मंदी का दौर कई मायने में मुसीबत लेकर आया है। वहीं यह भी सच है कि इस माहौल में कई ऐसे अवसर भी उत्पन्न हुए हैं जो सालों में एक बार आते हैं। बात अगर एक्रिलिक एवं विनायल आधारित बाइंडर और एडेसिव बनाने वाली 200 करोड़ रुपए के जेसंस इंडस्ट्रीज की करें तो उसके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। कंपनी ने प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से मिड एवं सीनियर मैनेजमेंट स्तर के दस नए लोगों को अपनी टीम में शामिल किया है। जेसंस के कंज्यूमर बिजनेस डिविजन के प्रेसिडेंट हरीश तिबरवाला कहते हैं, 'बड़ी कंपनियों से प्रतिभा को खींच पाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन पिछले छह-आठ महीने से इस ट्रेंड में बदलाव आया है। हमने अपनी कंपनी में नियुक्ति के लिए इस तरह का रिज्यूमे पहले कभी नहीं देखा।Ó नौकरियों में कटौती, वेतन में कमी और भविष्य की धुंधली तस्वीर को देखते हुए बड़ी कंपनियों से प्रतिभा निकलकर अपना भविष्य सुरक्षित जगह पर तलाशने में जुट गई हैं। इस समय वे वैसी जगहों का भी रुख कर रहे हैं जहां पहले सोच भी नहीं सकते थे। छोटी एवं मझोली कंपनियों में भारत का सुनहरा भविष्य देख रहे पेशेवर अब इन्हें अपनी तरक्की का माध्यम बनाने में जुट गए हैं। छोटे कारोबारियों को सलाह सेवाएं देने वाली फर्म मिलाग्रो के संस्थापक राजीव कारवाल कहते हैं, 'अब शिकारियों का ही शिकार किया जा रहा है।Ó वह बताते हैं, 'कर्मियों को अब यह समझ में आने लगा है कि छोटी कंपनियों के विकास में हिस्सेदारी से उन्हें अधिक लाभ मिल सकता है। बड़ी कंपनियों में वह पूरी व्यवस्था का एक छोटा सा हिस्सा बनकर रह जाते हैं।Ó जेसंस में सीनियर जीएम पद पर ज्वाइन करने वाले भूपिंदर सिंह पहले पिडिलाइट में काम करते थे। 1,700 करोड़ की कंपनी से 200 करोड़ रुपए की कंपनी में काम करना कम महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन जब बात कंपनी के विकास की आती है तो यहां वह अधिक आसान है। सिंह कहते हैं कि 200 करोड़ रुपए की कंपनी को बहुत जल्द 500 करोड़ की कंपनी बनाया जा सकता है। सिंह कहते हैं कि पिडिलाइट की विस्तार योजनाएं खटाई में पड़ जाने की वजह से उनके पास वहां इस समय सीखने के लिए कुछ खास नहीं था। वह कहते हैं, 'मैं यहां एक नया ब्रांड ब्लूग्लू लॉन्च करने की तैयारी में हैं। यह बहुत रोमांचपूर्ण मौका है।Ó कुछ दिन पहले तक संजू वर्मा एचडीएफसी सिक्योरिटीज में इंस्टीट्यूशल बिजनेस की प्रमुख हुआ करती थीं। अब वह प्रोएक्टिव युनिवर्सल ग्रुप में इंस्टीट्यूशल बिजनेस की सीईओ हैं। यह कंपनी कैपिटल गुड्स, फाइनेंशियल सर्विसेज, रियल एस्टेट में निवेश और सलाह सेवाएं देती है। कंपनी में 500 लोग काम करते हैं और भारत के बड़े शहरों के अलावा इसका दफ्तर टोक्यो एवं सिंगापुर में है। वर्मा कहती हैं, 'मेरे पास कई बड़ी कंपनियों से भी ऑफर थे, लेकिन मैंने काम की स्वतंत्रता और फैसले लेने की छूट की वजह से यहां ज्वाइन करने का फैसला किया। कंपनी ने मुझे वह काम करने की आजादी दी जो मैं करना चाहती थी।Ó पीयूजी के प्रमोटर और पूर्व बैंकर विकास बतरा कहते हैं, 'पिछले साल वित्त जगत में जो कुछ भी हुआ उससे यह मिथक टूट गया कि बड़ा है तो बेहतर है। हमारा काम अभी भले ही छोटा हो, पर इसमें विकास की अपार संभावनाएं हैं।Ó बड़ी कंपनियों में अच्छे पद पर बैठे लोग छोटी कंपनियों के लिए इसलिए भी आकर्षण का स्रोत बने हैं क्योंकि वे अपेक्षाकृत कम वेतन पर काम करने को तैयार हैं, हालांकि सच यह भी है कि हर मामले में ऐसा नहीं है। एचआर विशेषज्ञ कहते हैं कि वित्तीय सेवा, रियल एस्टेट और रीटेल में वेतन देने के मामले में 30-40 फीसदी की गुंजाईश है, लेकिन एफएमसीजी और फार्मा जैसे क्षेत्र में कर्मियों को वेतनवृद्धि के तोहफे के साथ नियुक्त किया जा रहा है। मुंबई की टैलेंट ट्रैकर्स के शेखर वैष्णव कहते हैं, 'वित्तीय कंपनियों में ऐसा हुआ है कि जिनकी नौकरी छूट गई या जिन्हें निकाल दिया गया उन्होंने कम वेतन पर दूसरी जगह ज्वाइन कर लिया। इस मामले का सकारात्मक पहलू यह है कि छोटी एवं मझोली कंपनियों को उचित कीमत पर अच्छा टैलेंट मिल रहा है।Ó वह कहते हैं कि बाजार में प्रतिभा की मौजूदगी बढऩे की वजह से छोटी एवं मझोली कंपनियों को फायदा मिला है। वित्तीय सेवा कंपनी एंबिट भी कर्मियों की नियुक्ति कर रही है। एंबिट की एचआर प्रमुख शालिनी कामत कहती हैं, 'हम अपनी पुरानी टीम को मजबूत करने के लिए नई प्रतिभा की नियुक्ति कर रहे हैं।Ó पिछले साल कंपनी ने मेरिल लिंच से एंड्रयू हॉलैंड जैसे दिग्गजों की नियुक्ति की थी। नए एमडी के रूप में कंपनी में शामिल निखिल पुरी पहले अमेरिका में कार्यरत थे। उद्योग जगत के जानकारों ने यह माना कि कंपनी ने गोल्डमैन सैक्स, डोएचे बैंक और मैक्वायरी बैंक के उच्चाधिकारियों को अपनी टीम में शामिल किया है। पिछले कुछ साल में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की वजह से कंपनियों की गतिविधियों में वृद्धि दर्ज की गई है। बड़ी कंपनियों ने बाजार में मौजूद प्रतिभाओं को बड़ी संख्या में आकर्षित किया है। इनमें से अधिकतर अपने एजेंडे को लागू करने में असफल साबित हो रहे हैं और छोटी कंपनियों में महत्वपूर्ण भूमिका पाने के बाद अपनी प्रतिभा दिखाने में जुट गए हैं।

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