Saturday, May 23, 2009
पर्यावरण सर्वोपरि है जिनके लिए उनकी कहानी
अपने शानदार एवं उभरते कैरियर को लात मार कर पर्यावरण को बचाने की पहल करना अपने आप में काफी हिम्मत वाला काम है। पर्यावरण के बारे में बढ़ती जागरूकता और उसे बचाने की मुहिम के लिए लोग हर रोज आगे आ रहे हैं। सरकार से लेकर सामाजिक संगठन तक और कंपनियों से लेकर आम आदमी तक समाज का हर वर्ग अब इस काम के लिए जागरूक बन रहा है। यह एक सार्वजनिक तथ्य है कि देश के युवा समाज को बेहतर बनाने में अपने हिस्से को पूरा करने में कोर कसर बाकी रखना नहीं चाहते। यह भी सच है कि अपने आकर्षक कैरियर को लात मार कर पर्यावरण के लिए काम करने का माद्दा कुछ ही लोगों में होता है। इन युवाओं के लिए पर्यावरण के प्रति जागरूकता ही अकेला मसला नहीं है, वे समाज के उस तबके के लिए भी काम करना चाहते थे जो हमेशा से उपेक्षा का शिकार हुआ है। एनर्जाइज्ड सॉल्यूशंस में तीन युवा इंजीनियरों की टीम है- अर्थ अग्रवाल, ध्रुव ढांढा और वशिष्टï माहेश्वरी। जब इन युवाओं ने देखा कि एक तरफ तो भारत विकास के कुलांचे भरता जा रहा है और दूसरी तरफ देश में ऐसे भी लोग हैं जो बिजली के बिना जीवन बिताने को मजबूर हैं तो इन लोगों ने कुछ करने का फैसला किया। संगठन के संस्थापक अर्थ अग्रवाल कहते हैं, 'हमने संगठन के निर्माण का फैसला इसलिए किया ताकि लोगों के लिए एक उचित समाधान निकाला जा सके और इसकी मदद से लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान किया जाए।Ó अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद तीनों अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे थे। अपने पेशेवर जिंदगी में तीनों तरक्की भी खूब कर रहे थे। बावजूद इसके तीनों को जो बात खल रही थी वह यह कि वे समाज के लिए अपने योगदान को पूरा नहीं कर पा रहे थे। अग्रवाल कहते हैं, 'सौर ऊर्जा तकनीक को समझने के बाद हमें लगा कि हम समाज के उस तबके की जिंदगी बदल सकते हैं जो बिजली के बिना काफी मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। सौर ऊर्जा की मदद से हम लोगों के सपने पूरा करने की कोशिश कर सकते थे।Ó इस दौर में जब अधिक से अधिक युवा पेशेवर डिग्री हासिल करने के बाद मोटे वेतन पर काम करने की ख्वाहिश रखते हैं, इन लोगों ने धारा के विपरीत चलने का हौसला क्यों दिखाया? अग्रवाल कहते हैं, 'हम लोगों में समाज के लिए काम करने की इच्छा थी। कुछ अलग करने की वजह से हम इस क्षेत्र में आ गए। संकट के समय ऐसे प्रयास हममें हौसला बढ़ाने, शंका के समय सुरक्षा और हर छोटी सफलता पर प्रोत्साहित करने का काम करते हैं।Ó उनके हाल के प्रोजेक्ट में ग्रामीण इलाके में सोलर लाइट की मदद से कम सुविधा प्राप्त लोगों के जीवन स्तर को उठाना शामिल था। अपने प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उन्होंने भारत एवं विदेश से फंड का इंतजाम किया और 150 लोगों का नेटवर्क तैयार किया जिन्होंने इसमें मदद की। इस काम में सामने आई चुनौतियों के बारे में अग्रवाल ने बताया, 'सबसे बड़ी समस्या ऐसे समाधान विकसित करने की थी जिसका प्रभाव संबंधित लोगों पर तुरंत देखा जा सके। इसके अलावा समाधान को दीर्घकालीन बनाना भी चुनौती थी। इन दोनों में तालमेल बनाना सबसे बड़ी समस्या थी।Ó अगर लोगों को आपकी क्षमता पर यकीन हो तो वे आपके सपने का हिस्सा बन जाते हैं और फिर एक बड़ी तस्वीर में कामयाबी की गाथा रची जा सकती है। जब कुछ युवा एक साथ आकर कोई काम शुरू करते हैं तो वे कुछ ठोस करने के प्रयास करते हैं। स्वेच्छा के संस्थापक और ईडी विमलेंदु झा कहते हैं, 'हमारे सपने ने साल 2000 में आकार लेना शुरू किया जब हम स्नातक पूरा होने से पहले पढ़ाई कर रहे थे। यमुना नदी की दुर्दशा देखते हुए हमें एक नए अभियान की शुरुआत की-वी फॉर यमुना। पहले एक स्वयंसेवी समूह और बाद में पंजीकृत संगठन के रूप में स्वेच्छा ने लंबा मुकाम तय किया है।Ó झा कहते हैं, 'स्वेच्छा दरअसल खुद को और अपने आसपास के सभी लोगों को मजबूत बनाने का अभियान है। यह भौतिक और सामाजिक रूप से लोगों को मजबूत बनाने का प्रयास है।Ó पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उसके बाद सफलता पाने का यह रास्ता इतना आसान भी नहीं रहा। झा कहते हैं, 'जब मैं स्कूल में था तब से मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं पढ़-लिख कर इंजीनियर बनूं। स्नातक पूरा करने के बाद पर्यावरण संबंधी मसलों को लेकर मेरे अंदर बेचैनी बएऩे लगी। मुझे पता नहीं था कि क्या किया जाना चाहिए। मेरे सभी दोस्त प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे थे। मैंने पढ़ाई से एक साल का अवकाश लेकर यमुना के लिए कुछ करने का फैसला किया।Ó काम करने के लिए फंड की जरूरत भी होती है।
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