Sunday, May 17, 2009

बैंकों को नई सरकार से मदद की आस

सार्वजनिक क्षेत्र के मझोले बैंक आकार में भले ही दूसरे पायदान पर हों लेकिन प्रदर्शन के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। आकार के सरकारी बैंक अपना छोर मजबूती से संभाले हुए हैं। अर्थव्यवस्था में खास उत्साह न होने के बावजूद ऐसे बैंक धीरे-धीरे अपने लोन पोर्टफोलियो में विस्तार कर रहे हैं। उनकी आमदनी का ग्राफ मुनाफे के दायरे में टिका हुआ है और संकटग्रस्त ऋण काबू में हैं। बीते कारोबारी साल की चौथी तिमाही के नतीजे घोषित करने वाले बैंकों में बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। इन दोनों ने ही मुनाफे की बढ़त दर में गिरावट दर्ज की है लेकिन तीसरे बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा ने चलन के उलट तैरकर दिखाया और बीती तिमाही के दौरान अपना शुद्ध मुनाफा दोगुना करने में कामयाबी पाई। लोन में बढ़त से जुड़े अहम पैमाने पर सार्वजनिक क्षेत्र के इन तीनों बैंकों ने उद्योग के औसत से कहीं ज्यादा बढ़त दर्ज की है। मार्च 2009 तिमाही में बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की लोन बुक साल दर साल आधार पर क्रमश: 26।1, 36.6 फीसदी और 30.4 फीसदी बढ़ी है। ये आंकड़े अच्छे हैं लेकिन बैंक ऑफ इंडिया को कमर कसने की जरूरत है क्योंकि इससे पहले की तिमाहियों के दौरान उसकी यह बढ़त काफी ज्यादा थी। बैंक ऑफ इंडिया के मुनाफे में बढ़त दिसंबर 2008 तिमाही में 70.4 फीसदी की ऊंचाई पर खड़ी थी लेकिन मार्च 2009 तिमाही में यह घटकर 7 फीसदी पर आ गई। दिसंबर 2008 तिमाही में मुनाफे में 84 फीसदी का इजाफा देखने वाले यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने अंतिम तिमाही में 10.8 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की है। इस बीच बैंक ऑफ बड़ौदा मार्च 2009 तिमाही में मुनाफे में 172.3 फीसदी की बढ़त से बाजार को चौंकाने में कामयाब रहा है। बीती तिमाहियों की तुलना में इसमें चार गुना बढ़त दर्ज की गई है।शुद्ध ब्याज आमदनी (एनआईआई) में बढ़त दर बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई), दोनों के मामले में गिरी है। शुद्ध ब्याज आमदनी ब्याज से होने वाली कमाई और ब्याज के रूप में होने वाला खर्च का अंतर होता है तथा यह बैंक की प्रमुख आमदनी का हिस्सा होता है। इस मद की बढ़त दर में गिरावट यूबीआई के लिए काफी ज्यादा रही है। यूबीआई के लिए यह जहां जनवरी-मार्च तिमाही में यह 11.1 फीसदी की दर से बढ़ी जबकि पिछली तिमाही में 50.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई थी। इसकी आशंका भी थी क्योंकि दिसंबर 2008 तिमाही में ब्याज दरों में उछाल आया था जिसके फलस्वरूप डिपॉजिट और एडवांस का खर्च बढ़ा। यह असर और भी गहरा होने की आशंका जताई जा रही थी क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने उधारी दरों को छोड़ते हुए ज्यादा डिपॉजिट आकर्षित करने के लिए डिपॉजिट दरों में बढ़ोतरी की थी। इस कदम का लक्ष्य ऐसे वक्त प्रतिस्पर्धा बढ़ाना था जब निजी सेक्टर के बैंकों ने बढ़त की योजनाओं पर ब्रेक लगा दिया। हालांकि, यहां तक कि इस मोर्चे पर भी बैंक ऑफ बड़ौदा का प्रदर्शन बेजोड़ रहा है। बैंक ने मार्च 09 तिमाही में एनआईआई में 43 फीसदी का इजाफा दर्ज किया है जबकि दिसंबर 2008 तिमाही में यह 46.6 फीसदी था। यह इस बात का संकेत है कि बैंक डिपॉजिट खर्च बढऩे का बोझ अपने कर्जदारों पर डालने में कामयाब रहा और लोन में बढ़त पर भी कोई असर नहीं दिख रहा। सरकारी बैंकों की 'अन्य आय की बढ़त दर भी ऊंची दिख रही है। अन्य आय के मायने फीस आधारित आमदनी से है और वह बैलेंसशीट का जोखिम नहीं बढ़ाती। बीओआई, बीओबी और यूबीआई ने मार्च 2009 तिमाही के दौरान अन्य आय में क्रमश: 20.2 फीसदी, 53.9 फीसदी और 79.9 फीसदी बढ़त दर्ज की। बीओआई के लिए बीती तिमाही की तुलना में यह बढ़त कुछ कम रही। इसका आंशिक कारण बैलेंस शीट में मंद पड़ती बढ़त है। इन बैंकों की एसेट क्वालिटी ज्यों की त्यों है क्योंकि उनके डूबे हुए कर्ज नेट एडवांस में 1 फीसदी से कम की हिस्सेदारी रखते हैं। इस पैमाने पर उनका प्रदर्शन एचडीएफसी बैंक के समान है जिसे देश का सर्वश्रेष्ठ और स्थिर बैंक माना जाता है। हालांकि, बढ़त के चक्कों पर पड़ी मंदी की धूल से पूरी तरह बचने में ये तीनों बैंक कामयाब नहीं रहे हैं और यह बात मार्च 2009 तिमाही के नतीजों से यह साफ है। उम्मीद की किरण यह है कि लोन में बढ़त के मोर्चे पर ये बैंक बढिय़ा गति दिखा रहे हैं जो बैंक की बैलेंस शीट में जान फूंकने का अहम स्रोत है। इसके अलावा मझोले आकार के सरकारी बैंक क्षमता के आधार पर निजी सेक्टर के शीर्ष बैंकों से अंतर घटा रहे हैं। मसलन, बीओआई और यूबीआई का एनआईएम दिसंबर 2008 तिमाही के दौरान 3 फीसदी से ज्यादा था। मार्च 2009 तिमाही में एनआईएम मामूली रूप से घटा है। निजी बैंकों में केवल एचडीएफसी बैंक ऊंचे मार्जिन तक पहुंच सका है।

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