रियल एस्टेट की कीमतें निम्रतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं, ऐसे में छोटी कंपनियों को ऑफिस स्पेस के लिए उपयुक्त डील में देर नहीं करनी चाहिए
एक सॉफ्टवेर कम्पनी के एमडी इन दिनों काफी व्यस्त हैं। वह इन दिनों अधिग्रहण की संभावनाएं तलाश कर रहे हैं। कंपनी इन दिनों गुडग़ांव में एक 16,000 वर्ग फीट के दफ्तर से कामकाज चला रही है। कंपनी का यह दफ्तर अपना और किराए का सम्मिलित रूप है। इसके अलावा उनका मुंबई के मलाड में 2,000 वर्ग फीट का एक और दफ्तर है। हाल में ही कंपनी ने मुंबई में 4,000 वर्ग फीट का एक और दफ्तर खरीदा है और वह किराए का दफ्तर छोड़कर उसमें शिफ्ट होने की तैयारी कर रही है।
गुडग़ांव में भी कंपनी 10,000 वर्ग फीट का एक दूसरा दफ्तर तलाशने में जुटी है, इसका उद्देश्य विस्तार के लिए जगह तैयार रखना है। एक तरफ कुछ लोग अब भी मंदी के बुखार से पीडि़त हैं, वह कहते हैं कि उनके दिमाग में भविष्य की योजनाएं चल रही हैं। वह कहते हैं, 'हालात बदलने में बहुत देर नहीं लगती। मंदी की वजह से जिन कंपनियों ने अपने विस्तार कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया था, अर्थव्यवस्था के गति पकडऩे के बाद वे इसे अंजाम देंगी। जरूरी है कि इसी दौर में उसके लिए तैयारियां पूरी कर ली जाएं।Ó अगर यह रणनीति सफल रहती है तो उन्हें तेज कदम चलाने का फायदा मिल सकता है।
महंगे किराए से परेशान घरेलू क्षेत्र की कई छोटी कंपनियों के लिए यह विस्तार का बेहतरीन मौका है। पूरे भारत में ऑफिस स्पेस की कीमतों या किराए में सुधार दर्ज किया जा रहा है। अगर साल भर पहले की बात करें तो भारत के शीर्ष आठ शहरों में इसमें 25-30 फीसदी कमी दर्ज की गई है। इनमें से भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां भारी कमी आई है। कुशमैन एंड वेकफील्ड के एक कंसलटेंट के अनुसार मुंबई में लोअर परेल में 39 फीसदी, वर्ली में 38 फीसदी और अंधेरी में 33 फीसदी कमी आई है। एनसीआर में गुडग़ांव में ऑफिस स्पेस की कीमतों या किराए में 26 फीसदी, नोएडा में 20 फीसदी और दक्षिणी दिल्ली के उभरते व्यावसायिक केंद्र जसौला में 24 फीसदी कमी आई है। अगर ऑफिस स्पेस की पूंजीगत कीमतों की बात करें तो औसतन उसमें 25-30 फीसदी कमी दर्ज की गई है।
कुशमैन एंड वेकफील्ड के ईडी कौस्तव राय कहते हैं, 'किराए और पूंजीगत कीमत के रूप में कीमतें न्यूनतम स्तर पर हैं। हो सकता है आने वाले दिनों में इसमें थोड़ी कमी और दर्ज की जाए, लेकिन दफ्तर खरीदने या किराए पर लेने के लिए प्रक्रिया शुरू करने का इससे बेहतर समय और नहीं हो सकता।Ó यह उन कंपनियों के लिए और भी बेहतर मौका साबित हो सकता है जिन्होंने रियल्टी बूम के समय दफ्तर किराए पर लिया हो। कोलकाता की एक प्रमुख वित्तीय कंपनी ने अपने किराए के दफ्तर को रिपेयर कराने के लिए उसी आकार का एक नया दफ्तर ले लिया है और उसमें शिफ्ट होने जा रही है। कंपनी के प्रवक्ता कहते हैं,्र 'हमने वह दफ्तर 2007 के अंत में लिया था, जब प्रॉपर्टी के किराए आसमान छू रहे थे। किराए की महंगी दर ने हमें अब तक रुकने के लिए मजबूर कर दिया था। अब हम एक संपत्ति खरीदने की हालत में भी आ गए हैं।Ó
इससे हालांकि कंपनी के खर्च में कोई बदलाव नहीं आएगा। कंपनी अपने पुराने दफ्तर के लिए जो किराया दे रही थी, उससे वह नई संपत्ति की किस्त चुका देगी। वह कहते हैं, 'पहले हम किराया चुका रहे थे और अब हम कंपनी के लिए एक संपत्ति खरीद रहे हैं। सात-आठ साल में हम ब्रेकइवन प्वाइंट पर पहुंच जाएंगे।Ó गुडग़ांव की प्रॉपर्टी कंसलटेंट फर्म जेनरियल के निदेशक प्रशांत कौरा कहते हैं, 'ऑफिस स्पेस खरीदने या किराए पर लेने के लिए यह बेहतरीन समय है। छोटी एवं मझोली आकार की कई कंपनियां इन दिनों ऑफिस किराए पर लेने या खरीदने के लिए बातचीत कर रही हैं।Ó महंगे किराए और प्रॉपर्टी की चढ़ती कीमत की वजह से कंपनियों के लिए अब तक जो दफ्तर खरीदना मुश्किल लग रहा था, अब वह उन्हें अपेक्षाकृत आसान दिखने लगा है। डेवलपर्स और मालिक छोटे आकार के दफ्तर किराए पर लगाने में अधिक ताम-झाम अपनाते थे क्योंकि बाजार में बड़ी जगह के लिए कम ग्राहक आते थे और बड़े दफ्तर अधिक उपलब्ध हैं।
सीबी रिचर्ड एलिस के एमडी अंशुमान मैग्जीन कहते हैं, 'अब बड़े दफ्तर से संबंधित डील नहीं के बराबर हो रहे हैं।Ó बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लैक्स में एक छोटे से दफ्तर में काम कर रही पीआर फर्म अब 1,400 वर्ग फीट का दफ्तर खरीदने की योजना बना रही है। एक साल पहले की तुलना में यहां कीमतें 33 फीसदी कम हुई हैं। फर्म के एक अधिकारी कहते हैं, 'दफ्तर खरीदने के लिए यह बेहतरीन समय है। हमें लगता है कि अगले तीन महीने में स्थितियां और अनुकूल होंगी क्योंकि अब भी करीब 20 फीसदी कमी की गुंजाईश बाकी है।Ó मजे की बात यह है कि इस दौर में संपत्ति बेचने वाला भुगतान के मामले में अधिक लचीलापन दिखा रहा है। संपत्ति खरीदने के लिए लंबी अवधि का विकल्प देकर खरीदारों को लुभाने की कोशिश की जा रही है।
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