करीब एक साल के बाद शेयर बाजारों में रौनक लौटती दिख रही है। लंबी अवधि के नजरिए के साथ शेयर खरीदने का यह माकूल वक्त है। बीता सप्ताह भी बाजार में आई तेजी को बरकरार रखने में कामयाब रहा और अब, कम ही ऐसे निवेशक हैं जो इक्विटी बाजार में संभावित भारी गिरावट के बारे में बातचीत कर रहे हैं। हालांकि यह नजरिया रखने वाले कम लोग नहीं हैं, जिनके मुताबिक मौजूदा रैली में शायद ही इतना दम है कि वह बाजार की तेजी को अगली तिमाही तक बनाए रख सके। वास्तव में कई लोगों का मानना है कि एक गिरावट अभी और आनी है लेकिन यह कोई नहीं जानता कि बाजार किस वक्त उसका सामना करेगा।
मौजूदा हालात में बाजार की तेजी को समर्थन देने वाले कारणों पर गौर करना दिलचस्प है, जिन्होंने कई विश्लेषकों को हैरत में डाल दिया है। यह तेजी ऐसे वक्त दस्तक दे रही है जब रिजर्व बैंक ने भी कह दिया है कि यह कारोबारी साल अर्थव्यवस्था के लिहाज से ढीला ही रहेगा। निवेशक होने के नाते कोई भी चौंक सकता है कि ऐसे वक्त बाजार में कौन जान फूंक रहा है क्योंकि अब तक कंपनियों ने खर्च घटाने के अपने उपायों से पकड़ ढीली नहीं छोड़ी है। मल्टीप्लेक्स और मॉल में अब भी भीड़ जुटती नहीं दिख रही, ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बाजार को मजबूती कौन दे रहा है।
जवाब छिपा है मनोवैज्ञानिक उत्साह में जो कभी-कभार ही लंबे डग भरते वक्त बुनियादी विश्लेषण पर गौर करता है। ब्रोकिंग हाउस के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशक घरेलू शेयर खरीदने की आदत की ओर लौट रहे हैं और उसी से कीमतों में उछाल दर्ज किया जा रहा है। आर्थिक तंत्र की तरलता में सुधार आने से खरीदारी को पुख्ता आधार मिला है और इक्विटी को लेकर निवेशकों के बीच डर कम हो रहा है।
हालांकि, घरेलू निवेशकों के लिए सहूलियत का माहौल अभी नहीं लौटा है क्योंकि अब भी उसके सामने ऐसी चुनौतियां खड़ी हैं, जो अभूतपूर्व हैं। मसलन, कई वेतनभोगी प्रोफेशनल को तनख्वाह में कटौती की मजबूरी का सामना करना पड़ा और वह भी काफी बड़े अनुपात में। कुछ लोगों का मानना है कि हर सेक्टर में आम दिख रही छंटनी का खौफ आगे भी कुछ वक्त तक जारी रहेगा। अगर रिकवरी हकीकत भी बनी तो भी कई कंपनियां आसानी से इसे स्वीकार नहीं करेंगी।
इसके कोई संदेह नहीं है कि निवेशक 'इंतजार करो और देखो की रणनीति अपनाएंगे और वे लोग भी जिन्होंने कुछ महीने पहले बाजार में कदम रखकर छोटे मुनाफे के लिए जल्दबाजी में बाहर का दरवाजा देखा था। जाहिर है, हम मंदी के बाजार में खड़े हैं और किसी ने भी यह भविष्यवाणी नहीं की है कि बाजार अगले चार सप्ताह में 25 फीसदी बढ़ जाएगा।
दुर्भाग्य से अनिश्चितता शेयर बाजारों का अभिन्न हिस्सा है और वे आपको तब मुनाफा देते हैं जब आपने उम्मीद तक नहीं की होती। इसी तरह उस वक्त आपको निराश करते हैं जब आपने अपनी जमा-पूंजी उसमें झोंकी होती है। ऐसे हालात में निवेशकों के लिए लंबी अवधि के लिए शेयर चुनना बुरा विचार कतई नहीं है क्योंकि गिरावट की रफ्तार में काफी कमी आई लगती है। कंपनियों के नतीजों का सीजन कुछ ही दूर खड़ा है और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बाजार कॉरपोरेट सेक्टर के बुरे प्रदर्शन पर रहम दिखाते हैं लेकिन इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि तिमाही नतीजों के निराशाजनक होने के बावजूद इंडेक्स चढऩे की ताकत बटोर सकेंगे। हालांकि, कई लोगों का मानना है कि बाजार ने कंपनियों के कमजोर तिमाही नतीजों को पहले ही शेयरों की कीमतों में शामिल कर लिया है। शेयर बाजारों के लिए महत्वपूर्ण कार्यक्रम आम चुनाव होगा। अगली सरकार किस राजनीतिक दल की बनेगी, इस पर बाजार का रुख काफी हद तक निर्भर करेगा।
अगर निवेशक इस बात को लेकर भ्रम में हैं कि उन्हें निवेश की क्या रणनीति अपनानी चाहिए, तो इसका जवाब है कि उन्हें पिछले साल की तुलना में ज्यादा इक्विटी बटोरनी चाहिए क्योंकि शेयर बाजार बीते वक्त के मुकाबले कम जोखिम दिख रहे हैं। रिटर्न के मामले में निवेशकों को संयम बरतना चाहिए लेकिन इस वक्त शेयर खरीदने की प्रक्रिया बढिय़ा विचार साबित हो सकता है।
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शेयर बाज़ार से सम्बन्धित अच्छी जानकारी दी आपने. हांलांकि इएरा अपना ज्ञान इस विषय में बहुत नहीं है.शेयर की पूरी जानकारी देने वाला एक आलेख ज़रूर प्रकाशित करें, हम जैसे अन्भिज्ञों के लिए,ताकि हम भी इस बाज़ार से जुड़ सकें.
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने , इसी तरह अपने विचारों से हमें अवगत करते रहे , हमें भी उर्जा मिलेगी, jankari milegi
ReplyDeleteधन्यवाद
मयूर
अपनी अपनी डगर