शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव निवेशकों के लिए काफी मुश्किलें लाता है। पिछले एक साल से अधिक समय से बाजार में गिरावट का दौर जारी था। सेंसेक्स जनवरी में 21,000 अंक का रिकॉर्ड स्तर छूने के बाद 50 फीसदी से भी अधिक गिर गया था। इससे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ और बहुत से लोगों का पोर्टफोलियो घटकर आधा रह गया था। जोखिम से बचने वाले निवेशकों ने सूचकांक की चाल देखकर इक्विटी से दूरी बना ली थी। लेकिन अब बाजार में सुधार के संकेत दिख रहे हैं और अब यह 11,000 अंक से ऊपर पहुंच गया है। ऐसे में क्या निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो को दोबारा संतुलित करने की जरूरत है?
पोर्टफोलियो में संतुलन का मतलब इक्विटी, डेट, सोना और कमोडिटी जैसे निवेश के वर्गों में अपने आवंटन में जरूरत के अनुसार फेरबदल करना। अगर किसी निवेश की रणनीति या जोखिम उठाने की क्षमता में बदलाव हुआ है तो वह अपने पोर्टफोलियो में निवेश को जरूरत के अनुसार संतुलित कर सकता है।
इसे समझने के लिए अनुष्का के निवेश को उदाहरण मानकर चलते हैं। अनुष्का के पास निवेश के लिए 50,000 रुपए हैं। वह एक आक्रामक निवेशक नहीं हैं और उनके लिए डेट में 60 फीसदी और इक्विटी में 40 फीसदी का आवंटन बेहतर रहता है। उन्होंने 30,000 रुपए (50,000 रुपए का 60 फीसदी) डेट में लगाए थे अनुष्का ने बाकी के 20,000 रुपए (50,000 रुपए का 40 फीसदी) इक्विटी में निवेश किए थे। एक वर्ष बाद अनुष्का को पता चला कि इक्विटी में उनका निवेश चार फीसदी बढ़कर 20,800 रुपए हो गया है। दूसरी ओर डेट में निवेश नौ फीसदी घटकर 27,300 रुपए रह गया था।
अनुष्का ने शुरुआत में अपने पोर्टफोलियो में डेट और इक्विटी को क्रमश: 60 फीसदी और 40 फीसदी की जगह दी थी और उन्हें इसी को बरकरार रखने के लिए अपने निवेश को फिर से संतुलित करना होगा। उन्हें कुछ शेयर बेचकर डेट इंस्ट्रूमेंट में दोबारा निवेश करना चाहिए। उनका कुल निवेश अब 20,800 रुपए जमा 27,300 रुपए है जो कि 48,100 रुपए बनता है। संतुलन बनाने के बाद 48,100 रुपए का 40 फीसदी निवेश शेयरों में और बाकी का डेट बाजार में होना चाहिए।
शेयर बाजार में तेजी के संकेत दिखने के बाद क्या आपको इक्विटी को पोर्टफोलियो में ज्यादा जगह देनी चाहिए? जो निवेशक अभी तक इक्विटी से दूर थे, उन्होंने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया है।
बहुत से निवेशक अच्छा प्रदर्शन कर रही संपत्तियों से अपना धन निकालने में हिचकते हैं। आपको यह याद रखना चाहिए कि पिछला प्रदर्शन हमेशा भविष्य में अच्छे प्रदर्शन का संकेत नहीं होता। शेयरों या म्यूचुअल फंड के लिए अच्छे रिटर्न का अपना पिछला रिकॉर्ड तोडऩा मुश्किल होता है। इसलिए ऐसा हो सकता है कि जो निवेश आपको अभी अच्छा रिटर्न दे रहा है वह आने वाले समय में आपकी उम्मीदों के अनुसार मुनाफा न दे पाए। दोबारा संतुलन बनाने से आप निवेश की अपनी योजना पर बने रहते हैं और बाजार के प्रदर्शन का इस पर असर नहीं पड़ता।
दोबारा संतुलन बनाने से लंबे समय में आपका रिटर्न भी बढ़ता है। निवेशक इसमें उस निवेश को बेचते हैं जिसका मूल्य बढ़ गया है और वह उसमें मुनाफा वसूली कर सकते हैं। इसके अलावा उस निवेश को खरीदते हैं जिसमें गिरावट आई है और आने वाले समय में उसमें तेजी आने की संभावना है। संतुलन बनाने से आपके जोखिम का स्तर भी बरकरार रहता है। अगर अनुष्का ने कुछ शेयर बेचकर डेट में निवेश न किया होता तो उनका आवंटन और जोखिम का स्तर उनकी सुविधा के मुताबिक न होता।
बाजार में लघु अवधि के बदलाव को देखकर पोर्टफोलियो में संतुलन जैसा कदम नहीं उठाना चाहिए। इसे तिमाही या वार्षिक आधार पर योजना बनाकर करना चाहिए। संतुलन बरकरार रखने से एक ओर जहां आपको मुनाफा वसूली में मदद मिलती है वहीं संपत्ति के आवंटन की अपनी रणनीति पर बरकरार रहने से आपका जोखिम भी कम होता है।
शेयर बाजार की मौजूदा स्थिति में वे निवेशक अपने ऐसे शेयर बेचकर पोर्टफोलियो में संतुलन ला सकते हैं जिनके दाम काफी गिर गए थे लेकिन अब बाजार चढऩे के साथ उनमें कुछ तेजी आई है।
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