गईं इक्विटी शेयरों में आम निवेशकों को नुकसान का सिलसिला जारी है। कई बार ऐसा लालच की वजह से होता है तो कई बार बाजार के खिलाडिय़ों की जोड़तोड़ की वजह से। इन तेज उतार-चढ़ाव वाले शेयरों में कारोबार के रहस्य सट्टेबाजों पेश नो रिस्क नो
भाग्य फूटा हो तो यह संकट की चौखट खटखटाने जैसा हो सकता है और अगर किस्मत साथ हो तो यह खजाने की चाबी साबित हो सकती है। इस बार कम इक्विटी पूंजी वाले शेयरों पर गौर करने का फैसला किया जो पाला बदलने वाले कारोबारियों के पसंदीदा माने जाते हैं। दलाल पथ पर हालिया तेजी के दौरान बीएसई 500 सूची में शामिल अबन ऑफशोर, क्रिसिल, एमआरएफ, पटेल इंजीनियरिंग और तानला सॉल्यूशंस ने चार सप्ताह से भी कम वक्त में 40-110 फीसदी मुनाफा बटोरा।
शेयरों की इस श्रेणी में निवेश करने की सुपरिभाषित रणनीति छोटे निवेशकों के लिए एक रहस्य रही है। ऐसा ज्यादा इसलिए होता है क्योंकि अपने फायदे के लिए चालाकी दिखाने वाले लोगों और सट्टेबाजों ने हमेशा ही इन शेयरों की चाल से खेल किया है। वजह लालच हो या फिर सट्टेबाजों की चालाकी, छोटे निवेशकों को हमेशा इस राह में कांटों का सामना करना पड़ता है। फंडामेंटल इन शेयरों की कीमतों पर कोई खास असर नहीं डालते, ऐसे में ये ज्यादा जोखिम लेने वाले निवेशकों या कारोबारियों का दांव होते हैं। जिन निवेशकों के पास खरीदने या बेचने की कोई वाजिब वजह नहीं होती, उन्होंने ऐसे शेयरों से काफी मुनाफा बटोरा है। लेकिन ऐसे किस्से भी खूब हैं कि ऐसे निवेशक तरलता के फंदे से खुद को बचा नहीं सके। इस पहेली को सुलझाने के लिए ईटी पेश कर रहा है एक पॉकेट गाइड कि इन शेयरों में ट्रेडिंग कैसे की जाए।
no risk no gain
सबसे पहले यह समझ लें कि कम इक्विटी कैपिटल वाले शेयरों को कितनी श्रेणियों में बांटा जाता है। इन्हें मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है। पहला, लो फ्लोट, दूसरा विश्लेषकों की कम कवरेज वाले और तीसरा कम संस्थागत हिस्सेदारी रखने वाले। विश्लेषकों का कहना है कि ये सभी विशेषताएं फायदेमंद भी साबित हो सकती हैं और नुकसानदायक भी। इसलिए, अगर आप अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते तो ये आपको वक्त-वक्त पर अतिवादी कदम उठाने के लिए उकसाएंगे।
छोटे निवेशकों के मामले में अगर किसी शेयर के बारे में विश्लेषकों की पर्याप्त राय न हो तो निवेशक को काफी हद तक अंधेरे में तीर चलाने की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, ऐसी कंपनियों की वैल्यू पर पर्याप्त रोशनी नहीं होती क्योंकि प्राय: निवेशक समुदाय इन पर करीबी निगाह नहीं रखता है। इसलिए लंबे वक्त तक शेयर की कीमत और फंडामेंटल के बीच कोई नाता कायम न रहने की स्थिति बन जाती है। यह शेयर को दोनों राह में से किसी पर भी ले जा सकता है लेकिन तरलता काफी निचले स्तर पर होने से कम निवेश के साथ कीमतों को कृत्रिम स्तरों तक ले जाया जाता है।
उछाल पर खरीदें
जिन शेयरों में ज्यादा कारोबार होता है, उनसे नाता जोडऩे से पहले प्रमोटरों के बारे में जानकारी जुटाना और कंपनी की योजनाओं की सूचना हासिल करना बढिय़ा विचार है। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि प्रमोटर ऐसी कंपनियों में ज्यादा हिस्सेदारी रखते हैं, इसलिए यह जानना जरूरी है कि प्रभावशाली प्रमोटर कंपनियों पर क्या असर डालते हैं। आईसीआईसीआई सिक्योरिटी के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर अनूप बागची ने कहा, 'अगर कंपनी में प्राइवेट इक्विटी निवेशक हिस्सेदारी रखते हैं तो यह एक सकारात्मक संकेत है और साथ ही इससे अंदाजा मिलता है कि किस वक्त वैल्यू जुटाई जा सकती है।
हालांकि इन शेयरों के मैदान में कदम रखने का सर्वश्रेष्ठ वक्त तब हो सकता है जब इनके कारोबार में उछाल दर्ज किया जाए। विश्लेषकों का कहना है कि ये शेयर कारोबार को लेकर ज्यादा संवेदनशील रुख रखते हैं और तकनीकी चलन की तुलना में खबरों का प्रवाह ज्यादा अहमियत रखता है। शेयरों की चाल में उठापटक की प्रकृति देखी जाती है, इसलिए सीमित ऑर्डर में खरीदने की सलाह दी जाती है। और शेयरों की कीमत चढऩे पर इस समूह का कुछ हिस्सा बेच देना चाहिए। शेष शेयर आपको अपने पास रखने चाहिए क्योंकि यह पता लगाना मुश्किल है कि शेयर की कीमत कहां तक जाएगी, इसलिए सभी पोजिशन जल्द खोने से बचना चाहिए।
मुंबई स्थित फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनी पायनियर इनवेस्टकॉर्प में रिसर्च एंड फाइनेंशियल प्लानिंग के सहायक वाइस प्रेसिडेंट करण चिमनदास के मुताबिक आपको इन शेयरों में एक दिन या एक सप्ताह के नजरिए के साथ कारोबार करना चाहिए और स्टॉप लॉस पोजिशन का सख्ती से पालन करना चाहिए। उन्होंने सलाह दी, 'ये शेयर सट्टेबाजों की चालाकी के दायरे में आते हैं, इसलिए आप कारोबार के गलत जाल में भी फंस सकते हैं। निवेशकों के उत्साह पर दांव खेलिए लेकिन स्टॉप लॉस का ट्रिगर आने पर उस शेयर से अलग चले जाएं। जब बात इन शेयरों की आती है तो आप स्टॉक के प्रति वफादारी नहीं दिखा सकते।
स्टॉप लॉस अहम
जिन शेयरों में ज्यादा कारोबार होता है, वे ज्यादातर कारोबारियों के पसंदीदा होते हैं। ऐसे में ज्यादातर निवेशक ट्रेडिंग के लिए समुचित स्टॉप लॉस स्तर और प्राइस टारगेट नहीं रखते। ये शेयर तकनीकी आधार पर नहीं खरीदे जाते लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि बुनियादी स्तरों को परिभाषित किया जा सकता है। चिमनदास ने कहा, 'ऐसे शेयरों का चुनाव करते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है। ये उन लोगों के चुनिंदा समूह के लिए होते हैं जो ज्यादा जोखिम सहने की क्षमता रखते हैं और ऐसे शेयरों में कदम रखने के लिए पैसा गंवाने की क्षमता होनी चाहिए। इनमें काफी उठापटक होती है, इसलिए नए और जोखिम से बचने वाले निवेशक को इनसे दूरी बनाए रखनी चाहिए।
विश्लेषकों की सलाह है कि इक्विटी में निवेश करने वाली रकम का 15-20 फीसदी हिस्सा ट्रेडिंग पोर्टफोलियो में आवंटित किया जाना चाहिए जिसमें आप तकनीकी विश्लेषण और घटनाक्रम आधारित खबरों के आधार पर बाहर निकले सकें और दाखिल हो सकें। संस्थागत मालिकाना हक और विश्लेषकों की ओर से कवरेज मिलने के बाद ऐसे शेयरों के दाम चढऩे लगते हैं। कारोबारी वॉल्यूम कम होता है, ऐसे में मांग-आपूर्ति का अंतर कीमत बढ़ाने का काम करता है।
फंड मैनेजरों का कहना है कि खरीद या स्टॉप लॉस प्राइस के स्तर से नीचे गिरने पर इन शेयरों को अपने पास रखने से जुड़े फंडामेंटल तर्क से बचा जाना चाहिए। मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज के फंड मैनेजर मनीष सोंथालिया ने कहा, 'आपको यह बात जरूर याद रखनी चाहिए कि आप शेयर की फंडामेंटल वैल्यू के बजाय कीमत पर खेल कर रहे हैं। ऐसे हालात में फंडामेंटल विश्लेषण की भूमिका बहुत कम या बिलकुल नहीं होनी चाहिए।
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रबंध निदेशक सी जे जॉर्ज को हालांकि लगता है कि मध्यम से लंबी अवधि के बाद शेयर की कीमत इक्विटी कैपिटल के वास्तविक आकार के बजाय फंडामेंटल से तय होती है। उन्हें लगता है, 'छोटे निवेशक निवेश से जुड़े अपने फैसले तय करने के लिए सट्टेबाजों की ओर देखने के बजाय इन चीजों को ज्यादा तरजीह देते हैं। कैपिटल बाजार के जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि जितना संभव हो, इन शेयरों में वाया डेरिवेटिव दाखिल नहीं होना चाहिए। रहस्य को सुलझाना कभी आसान नहीं होता लेकिन अगर आप वक्त लगाने के लिए तैयार हैं तो आप पकड़ बना सकते हैं। इसलिए, निवेश करते रहिए।
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