Friday, April 10, 2009

महानगर का फायदा साथ वाले छोटे शहरों को

भारत में बड़े शहरों के पास बसे उपनगर विकास के अवसरों के मामले में काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। पिछले एक दशक में आमदनी और कारोबार में वृद्धि के साथ ही उपनगरों में ही अधिकतर मौके बने हैं। पुराने शहरों का डिजाइन कम जनसंख्या को दिमाग में रखकर तैयार किया गया था। स्वतंत्रता के समय केवल 10 फीसदी जनसंख्या ही शहरों में थी और बाकी का भारत ग्रामीण इलाकों में बसता था।
लेकिन अब हकीयत यह है कि 90 फीसदी विकास नए क्षेत्रों के आसपास केन्द्रित है और युवा जनसंख्या यहीं रहना पसंद करती है। भारत के उपनगरों की बात की जाए तो इनके बहुत से फायदे और नुकसान मिल जाएंगे। इन इलाकों की एक बड़ी खासियत नया और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर है।
भारत ने शुरुआती दौर में इंफ्रास्ट्रक्चर के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा। सरकार ने जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) की शुरुआत की है जिसमें राज्यों को अच्छी सुविधाओं वाले बेहतर शहर तैयार करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। लेकिन इन प्रयासों को अभी 4-5 वर्ष ही बीते हैं और इनके नतीजे अभी सामने आने बाकी हैं।
पिछले कुछ वर्षों में उपनगरों के आकार और गुणवत्ता में सुधार हुआ है। पहले इन्हें शहरों का विस्तार माना जाता था, अब इनकी पहचान छोटे शहर के तौर पर बन रही है। ये अपने आप में पूरी तरह सक्षम हैं। लेकिन कानून और व्यवस्था, सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसी चुनौतियां यहां अभी भी बरकरार हैं। हालांकि, इनसे सरकारी प्रयासों और डेवलपरों के आगे आने से निपटा जा सकता है। सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली, पानी, सड़क और अन्य बाहरी सेवाओं पर ध्यान देना चाहिए। उसे हवाई अड्डïों और सड़कों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए और अंदरूनी इंफ्रास्ट्रक्चर की जिम्मेदारी डेवलपरों को सौंप देनी चाहिए। कई बार प्राइवेट डेवलपरों और सरकार के बीच भागीदारी भी फायदेमंद होती है।
बहुत सी जगहों पर इंफ्रास्ट्रक्चर काफी कमजोर होता है और इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। दिल्ली शायद इसका एकमात्र अपवाद है और यहां मेट्रो और यातायात के अन्य साधन उपलब्ध हैं। विकास के किसी भी अन्य कार्य से पहले इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करना चाहिए। भारत में इसके बारे में बाद में सोचा जाता है। विदेश में इन बाधाओं पर काफी ध्यान दिया जाता है। वहां उपनगरीय इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर किसी भी बड़े शहर के मुकाबले का होता है।
वहीं, भारत में शहर के प्रमुख इलाकों के मुकाबले उपनगरों में रियल्टी के दाम कम होते हैं। इसकी वजह जमीन का सस्ता होना है। मुंबई के निकट ठाणे-पनवेल और चेन्नई और पुणे के उपनगरों में बहुत सी परियोजनाएं तैयार की जा रही हैं। उपनगरों में कीमतें 15-20 फीसदी गिरी हैं। लेकिन, मेरा अनुमान है कि इनमें आने वाले समय में काफी मांग नजर आएगी। मेरा मानना है कि जून के बाद इन जगहों पर मांग पूरी करना मुश्किल हो जाएगा।

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