Friday, April 10, 2009

ग्राहकों को सस्ते कर्ज के लिए करना पड़ सकता है इंतजार

सरकार बैंकों पर ब्याज दरों में कमी करने का दबाव डाल रही है। कुछ बैंकों ने ब्याज दरों में कमी की है, लेकिन व्यवस्था की खामियों के चलते ब्याज दरों में एक समान कमी दर्ज नहीं की गई है। कर्ज बाजार की हलचल पर एक नज़र

सरकारी बैंक ब्याज दरों में कमी करने के सरकार के सुझाव को मानते रहे हैं, लेकिन अब बैंकों ने ब्याज दरों में और कमी करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। बैंकों ने ब्याज दरों में और कमी करने से इनकार कर दिया है। वहीं, फिक्की ने बैंकों से कहा कि उन्हें अपनी बेंचमार्क प्रधान उधारी दर (पीएलआर) मौजूदा 12-13 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी से नीचे लानी चाहिए। बैंकों के प्रमुखों ने ऐसा करने में असमर्थता जताई। उनकी दलील है कि फंड की लागत में भारी कमी आने पर ही ब्याज दर 10 फीसदी से नीचे लाई जा सकती है। अभी जमा जुटाने, कैश रिजर्व और वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को बनाए रखने की लागत अधिक है। रिजर्व बैंक (आरबीआई) की डिप्टी गवर्नर उषा थोराट ने भी यह स्वीकार किया है कि बैंकों को पीएलआर में कमी करने के लिए तैयार नहीं किया जा सका है।
आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी हाल में फिक्की में आयोजित एक कार्यक्रम में व्यवस्था की खामियों को माना। आरबीआई ने अक्टूबर 2008 से नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और रेपो रेट में 4 फीसदी तक की कमी की है। लेकिन, अधिकतर व्यावसायिक बैंकों ने अपनी बेंचमार्क उधारी दरों में महज 2 फीसदी तक की कमी की है। सीआरआर के मुताबिक बैंकों को अपने जमा का एक हिस्सा आरबीआई के पास रखना पड़ता है। इस रकम पर आरबीआई बैंकों को कोई ब्याज नहीं देता है। रेपो रेट वह दर जिस पर बैंक आरबीआई से कर्ज लेते हैं। यह छोटी अवधि का कर्ज होता है और इसके लिए बैंकों को आरबीआई के पास सिक्योरिटीज गिरवी रखनी पड़ती है। देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने पिछले साल अक्टूबर से अभी तक पीएलआर में 1.5 फीसदी कमी है, जिससे यह 13.75 से घटकर 12.25 फीसदी पर गई है। इसी अवधि में निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई बैंक ने पीएलआर महज आधा फीसदी घटाई है, जिससे उसकी पीलएलआर 17.25 फीसदी से घटकर 16.75 फीसदी पर गई है।
इससे यह पता चलता है कि रिजर्व बैंक ने सीआरआर और रेपो रेट में जो कटौती की थी, उसका लाभ ग्राहकों को नहीं मिला है। लेकिन, इस बारे में बैंकों का कहना है कि उनके 75 फीसदी कर्ज पीएलआर से कम पर दिए गए हैं और इसमें से करीब 20-30 फीसदी कर्ज 10 फीसदी से कम ब्याज दर पर दिए गए हैं। बैंकों का कहना है कि करीब 25-40 फीसदी कर्ज 10-12 फीसदी की दर पर दिए गए हैं। इससे पता चलता है कि रिजर्व बैंक की उदार मौद्रिक नीतियों का ग्राहकों को लाभ मिला है।
उदाहरण के लिए सरकारी तेल कंपनियां जो सितंबर 2008 के बाद तीन से छह महीने की अवधि का कर्ज 13-16 फीसदी दर पर ले रही थीं, अब 6 फीसदी की दर से छोटी अवधि का कर्ज ले रही हैं। बैंकों का कहना है कि इससे यह कहना कि उदार मौद्रिक नीतियों का लाभ नहीं हुआ है, पूरी तरह गलत है। विशेषज्ञ बैंकिंग सिस्टम में ट्रांसमिशन पॉलिसी की खामियों के लिए पीएलआर से कम ब्याज दर व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते हैं। जब बैंकिंग व्यवस्था में पर्याप्त तरलता होती है तो कर्ज पर ब्याज की दर कर्ज लेने वाले की मोलभाव की क्षमता पर निर्भर करती है।
पंजाब नेशनल बैंक के चेयरमैन के सी चक्रवर्ती ने कहा, 'लोन की कीमत के मामले में स्थिति गड़बड़ है। भारत में यह पूरी तरह से खराब है। उन्होंने कहा, 'हमारे यहां सबसे अधिक जोखिम वाले ग्राहक को रियायती दरों पर कर्ज मिलता है। यहां किसान या निर्यातक का उदाहरण दिया जा सकता है। जोखिम के आधार पर लोन की कीमत तय करने के सिद्धांत का पालन यहां नहीं किया जाता है। बैंक के उत्पादों की कीमत निर्धारण में पारदर्शिता का पहलू भी महत्वपूर्ण है। इंडियन ओवरसीज बैंक के कार्यकारी निदेशक जी नारायणन ने कहा, 'यदि दो ग्राहकों की एक समान रेटिंग है और दोनों ही एक ही उद्योग से संबंधित हैं तो यदि एक ग्राहक को बैंक को ज्यादा कारोबार देता है तो उसे निश्चित रूप से अच्छी कीमत पर बैंक से लोन मिलेगा।
पीएलआर की उपयोगिता भले ही घट हो गई हो, लेकिन रेफरेंस रेट के रूप में यह अभी भी महत्वपूर्ण है। लंबी अवधि के अधिकतर लोन पीएलआर से कम दर पर दिए जाते हैं। यही वजह है कि पीएलआर में बदलाव का असर ग्राहक पर पड़ता है। उदार मौद्रिक नीति का भी खास महत्व है। यह खासकर वैसे ग्राहकों के लिए महत्वपूर्ण है, जो लोन के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के बाद लोन की शर्तों को बदलने के बारे में बैंकों से बातचीत करने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए इस साल जनवरी से ही एसबीआई पीएलआर 12.25 से कम नहीं करने पर अड़ा हुआ है। हालांकि, तब से रेपो रेट में 1.5 फीसदी की कमी आई है। परिणामस्वरूप एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक दोनों के ही होम लोन के पुराने ग्राहकों को अधिक ब्याज चुकाना पड़ रहा है, जबकि दोनों ही बैंक नए ग्राहकों को कम दर पर लोन दे रहे हैं।
इस मामले में बैंकों का कहना है कि सिर्फ रेपो रेट में बदलाव होने से पीएलआर में बदलाव होना जरूरी नहीं है। उनका कहना है कि उनके कुल रकम का एक फीसदी से भी कम हिस्सा रेपो के जरिए जुटाया गया होता है। केनरा बैंक के सीएमडी सी महाजन ने कहा, 'बैंकों को कर्ज पर ब्याज की दर तय करने समय कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इनमें जमा की लागत, सीआआर, एसएलआर का पालन, डिपॉजिट इंश्योरेंस के लिए डीआईसीजीसी को प्रीमियम का भुगतान, खराब कर्ज की भरपाई की लागत और कामकाजी लागत शामिल हैं। बैंकों की मौजूदा पीएलआर उच्चतम स्तर पर है।
फिक्की के साथ बैठक के बाद कई बैंकों के प्रमुखों ने बताया कि यदि आरबीआई प्रमुख दरों में और कटौती करता है तो भी वे अपनी उधारी दरों को जल्द घटाने में असमर्थ होंगे। देश के दो सबसे बड़े बैंकों- एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक को छोड़ लगभग सभी बैंकों ने कुछ ही दिन पहले अपनी ब्याज दरों में कमी की है। इससे यह जाहिर होता है कि जब तक बैंक अपनी कुल लागत में कमी नहीं लाते हैं, वैसे ग्राहकों को लाभ मिलता रहेगा जो बैंकों के साथ मोलभाव करने में सक्षम हैं। कर्ज की वृद्धि दर की रफ्तार थमने के बाद ही ब्याज की दरों में कमी आएगी। जापान में ऐसा हो चुका है।

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