Thursday, February 12, 2009
रहत की साँस या और ख़राब हालत
भारतीय कॉरपोरेट जगत के लिए दिसंबर तिमाही के नतीजे अहम थे। नतीजों के खत्म होने के बाद कुछ राहत की सांस ली जा सकती है क्योंकि कई कंपनियां आमदनी के लिहाज से उम्मीदों पर खरी उतरीं। टेक्नोलॉजी सेक्टर के प्रदर्शन से बाजार को बहुत ज्यादा मायूसी नहीं हुई। चौंकाने वाले नतीजे उन क्षेत्रों से आए, जिन्हें कई लोग रक्षात्मक मानते थे। कुल-मिलाकर दिसंबर तिमाही के नतीजों का मिला-जुला कहा जा सकता है। शेयर बाजार में जारी उतार-चढ़ाव निवेश कों को परेशान कर रहा है। यही नहीं, उन्हें आने वाली तिमाही में निवेश को लेकर एहतियात बरतने की भी जरूरत है। मैक्रो इकनॉमिक मोर्चे पर हालात निराशाजनक बने हुए हैं, लेकिन क्रेडिट पॉलिसी ने जानकारों को हैरान जरूर किया है। रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करते हुए बैंकों को दरों में कटौती करने की सलाह दी। दरअसल, माना जा रहा है कि सिस्टम में पर्याप्त पैसा है। ऐसे में पॉलिसी दरों में बदलाव की जरूरत नहीं है। क्रेडिट पॉलिसी ने ऐसे ही संकेत दिए। ऐसे में जानकारों का कहना है कि उपभोक्ताओं और निवेशकों के ठंडे पड़े उत्साह में दोबारा जान डालने की कोशिश करनी चाहिए। बैंकिंग सेक्टर के लोन पोर्टफोलियो में बढ़त डिपॉजिट की रफ्तार के मुताबिक न होने से इस दलील को मजबूती मिलती है। दूसरी तरफ, भारतीय कॉरपोरेट जगत रिजर्व बैंक के दरों में कटौती न करने से कतई खुश नहीं है और उसने दरें कम करने का आग्रह किया है। साथ ही आगामी महीनों में सीआरआर को और निचले स्तर पर लाने की मांग की जा रही है। इसका मकसद मांग को बढ़ाना है, जिसने निकट अतीत में कमजोरी के संकेत दिए हैं। दिलचस्प है कि रीटेल और एफएमसीजी सेक्टर ने मांग में इजाफा करने के लिए डिस्काउंट से जुड़ी रणनीति पर कदम बढ़ाना शुरू किया है। आपको सिर्फ शॉपिंग मॉल में जाने की देर है और वहां डिस्काउंट की भरमार आपका स्वागत करेगी। वास्तव में आज-कल 40-50 फीसदी डिस्काउंट आम बात है और महंगाई दर के गिरावट का चलन जारी रखने के संकेत मिल रहे हैं, ऐसे में कीमतों में बढ़ोतरी का डर इतिहास की बात हो गया है। बहरहाल ग्राहक का उत्साह दोबारा बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि वह मौजूदा हालात में खर्च करने को तैयार नहीं है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती और महंगाई दर के मोर्चे पर अच्छी खबर के बावजूद नौकरी के रहने या न रहने की उलझन बरकरार है। इस वजह से लोग पैसा खर्च करने को तैयार नहीं हैं। कम भत्तों से लेकर कर्मचारियों को लंबी छुट्टी पर भेजने तक, कई कंपनियों ने कड़े उपायों की घोषणा की है। रीटेल सेक्टर के लिए हाथ में उपलब्ध नकदी लगातार घट रही है, ऐसे में उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के लिए उम्मीद की किरण डिस्काउंट के जरिए बिक्री बढ़ाना है। रीटेल और एफएमसीजी सेक्टर से जुड़ी कंपनियों ने बिक्री बढ़ाने की रणनीति लागू भी कर दी है। इसी तरह का चलन ऑटो जैसे सेक्टर में भी देखने को मिला है, जो दिसंबर तक मांग में जबरदस्त गिरावट का सामना कर रहा था। हालांकि, जनवरी में उसके लिए भी हालात बेहतर हुए हैं। हालांकि, यहां भी जानकारों को यह सवाल परेशान कर रहा है कि क्या जनवरी की रफ्तार आगे भी बरकरार रह पाएगी? इस बीच जनवरी-मार्च तिमाही को लेकर कंपनियां ज्यादा उम्मीद नहीं रख रही हैं।
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