Friday, October 16, 2009

गाँव में भी अब दिखने लगे लोगों को बाज़ार

भारत परंपरागत रूप से कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था है। अगर 60 के दशक की बात करें तो देश के जीडीपी का 50 फीसदी कृषि क्षेत्र से आता था। इस समय भारत की आबादी का कम से कम दो तिहाई हिस्सा जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर था। कृषि के परंपरागत तरीके, जमीन के मालिकाना हक के मामले में सीमित पहुंच और मानसून पर अधिक निर्भरता ने इस क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा ग्रामीण जनता जिनके लिए खेती आजीविका का एकमात्र साधन थी उनके लिए भी मुश्किलें बढ़ी हैं। अब हालत यह है कि बुरे दिन बीत चुके हैं। अब एफएमसीजी, टेलीकॉम, ऑटोमोबाइल्स, बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज क्षेत्र की कंपनियां ग्रामीण बाजार पर बड़ा दांव लगाने की तैयारी कर रही हैं। वे इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाना चाहती हैं और अपने ब्रांड का ग्रामीण इलाकों तक विस्तार करना चाहती हैं। सरकार द्वारा कृषि कार्य के लिए खर्च बढ़ाने की वजह से इन इलाकों में पिछले पांच साल में निवेश काफी बढ़ा है। इससे खेती के लिए आसानी से कर्ज उपलब्ध हो रहा है और सिंचाई के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में मदद मिल रही है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि भारत के कृषि क्षेत्र में स्थितियां बदल रही हैं और इसमें पूंजी का प्रवाह बढ़ा है। सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों से देश में सिंचित भूमि का रकबा बढ़ा है और खेती के लिए किसान अब उर्वरक और कीटनाशक का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं। कृषि क्षेत्र में निवेश के अलावा सरकार सड़क, हाउसिंग, टेलीकॉम, विद्युतीकरण और सिंचाई पर अधिक जोर देने के उद्देश्य से भारत निर्माण योजना जैसे राष्टï्रीय प्रोजेक्ट ला रही है। इन प्रयासों के फलस्वरूप जो विकास होगा उससे ग्रामीण भारत की खरीदने की क्षमता में इजाफा दर्ज होगा और उनके जीवनस्तर में सुधार दर्ज किया जाएगा। यह दरअसल उन कंपनियों के लिए बहुत अच्छी खबर है जिनका वित्तीय भविष्य किसान समुदाय और ग्रामीण जनता से जुड़ा है। ग्रामीण इलाके की सबसे बड़ी समस्या कम आय है। यह समय के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है। इस मसले से जुड़ी चिंताएं दूर करने के लिए पिछली संसद ने राष्टï्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी नियम (नरेगा) लागू किया था। इस योजना के तहत गांवों के गरीब परिवारों के कम से कम एक सदस्य को साल में 100 दिन रोजगार देने की व्यवस्था की गई थी। नरेगा से जुड़े अधिकतर काम तब अलॉट किए गए जब खेती-बारी का समय नहीं था। इससे यह सुविधा हुई कि जो लोग खेती के काम में मदद करते थे, सीजन में वे उसमें जुटे रहे और बाद में नरेगा के तहत उन्हें रोजगार मिला। इस योजना से ग्रामीण इलाके में लोगों की आमदनी बढ़ाने में काफी मदद मिली और काफी हद लोगों की कृषि पर निर्भरता कम करने में मदद मिली। दो साल पहले नरेगा को प्रायोगिक तौर पर देश के 200 जिले में लागू किया गया था। इसके बाद दैनिक वेतनभोगी मजदूरों की आमदनी में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। जब यह योजना लॉन्च की गई तो उत्तर प्रदेश में दैनिक मजदूरों की दिहाड़ी 58 रुपए थी जो अब 100 रुपए पर पहुंच चुकी है। इस योजना की शानदार सफलता को देखते हुए सरकार ने अब इसका दायरा बढ़ाने का फैसला किया है और इसके लिए 42,000 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। हरित क्रांति के बाद देश के शहरी उपभोक्ताओं को सस्ते अनाज की सुविधा मिली, लेकिन इससे खाद्यान्न की कीमतों पर असर पड़ा और कृषि को जीवनयापन के लिए बेहतर साधन के रूप में अपनाने वाले लोगों की संख्या में कमी लाई। पिछले कुछ सालों में हालांकि इस ट्रेंड में भी बदलाव देखा गया है। अब गेहूं, चावल, दाल और तिलहन की कीमतें बढ़ी हैं। पिछले कुछ सालों में तकरीबन हर अनाज की कीमत बढ़ी है और इससे कुछ हद तक किसानों को राहत मिली है। पिछले कई सालों तक ग्रामीण बाजार को कंपनियों द्वारा अनदेखा किया जाता रहा, लेकिन अब इस ट्रेंड में भी बदलाव देखा जा रहा है। कंपनियां ग्रामीण उपभोक्ताओं की बढ़ती आमदनी से उत्साहित हैं और नए-नए उत्पाद पेश कर उस बाजार पर भी छा जाने की तैयारी कर रही हैं।

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