Friday, October 2, 2009

टियर टू एवं थ्री शहरों में लोगों द्वारा अधिक खर्च करने की वजह से कंज्यूमर फाइनेंस कंपनियां लगा रही हैं दांव

हैदराबाद के एक मध्य स्तर के सॉफ्टवेयर कर्मी अविनाश रेड्डïी बाली से संबंधित एक पोस्टकार्ड देखकर काफी रोमांचित हो गए। छुट्टिïयों पर जाने में होने वाले खर्च को लेकर उनकी चिंताएं बढ़ गईं। उन्हें ट्रैवल इंश्योरेंस और पर्यटन संबंधी अन्य खर्च के लिए रकम की जरूरत थी, रेड्डïी जानते थे कि इस पर्यटन पर खर्च होने वाली रकम पांच अंकों में जाएगी। उन्हें पता था कि बैंक से लोन लेने में काफी पेपरवर्क करना पड़ेगा और समय भी काफी लगेगा। चूंकि रेड्डïी अपने पड़ोसियों से उधार नहीं लेना चाहते थे, इसके बाद उन्होंने कंज्यूमर फाइनेंस कंपनी की मदद लेने का फैसला किया। यहां उन्हें आसानी से और जल्द लोन मिल सकता था। आवेदन करने के कुछ ही दिनों के भीतर रेड्डïी ने पेपरवर्क पूरा किया और लोन लेकर छुट्टïी मनाने निकल पड़े। चेन्नई स्थित श्रीराम ट्रांसपोर्ट फाइनेंस के प्रबंधक आर श्रीधर कंज्यूमर फाइनेंस कारोबार के विकास की कई वजह बताते हैं। पैसे उधारी देने और लेने का चलन दक्षिण भारत के तकरीबन हर इलाके में है। परंपरागत रूप से तहसीलदार जरूरतमंद लोगों को ऊंची ब्याज दर पर रकम उधार देते हैं। भारत के दक्षिणी इलाके में कर्ज लेने वाले लोगों का कर्ज वापसी नहीं करने की दरें बहुत कम हैं। सुंदरम फाइनेंस के एमडी टीटी श्रीनिवास राघवन कहते हैं, 'भौगोलिक रूप से हम सबसे अधिक युवा आबादी के साथ काम करते हैं। अपने जॉब की वजह से वे कर्ज लेने एवं उसे समय पर वापस करने में सक्षम हैं। इससे कंज्यूमर के व्यवहार में आए बदलाव का पता चलता है और कंज्यूमर फाइनेंस बिजनेस को नई गति देने में मदद मिल रही है।Ó
साल 2008 में एसोचैम द्वारा ग्राहकों के व्यवहार पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार पता लगता है कि देश में बिकने वाले 85 फीसदी ह्वïाइट गुड्स के लिए कंज्यूमर फाइनेंस कंपनियों से फंड जुटाया जाता है। महानगरों की आबादी को लुभाने के लिए जहां कंपनियां नए उत्पाद पेश करने की योजना बनाती रहती है, वहीं देश की दो तिहाई आबादी को भी वे नजरअंदाज करना नहीं चाहती। एसोचैम के अनुसार ग्रामीण इलाकों में बिक्री दरअसल लो कॉस्ट फाइनेंस बिजनेस का करीब एक चौथाई है।
पंपसेट या दोपहिया वाहन जैसे उत्पाद ग्रामीण इलाकों में खूब बिकते हें क्योंकि इसके इस्तेमाल के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर निर्भरता बहुत अधिक नहीं है। अगर विकास और कर्ज के भुगतान की बात करें तो इसमें भी टियर टू एवं थ्री शहर बहुत पीछे नहीं हैं। उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मांग के हिसाब से बात करें तो रीटेल लोन के लिए त्रिच्ची, मदुरै, नेल्लोर और तिरुपति जैसे शहरों में बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे शहरों से दोगुनी मांग है। बजाज फाइनेंस के सीईओ राजीव जैन कहते हैं, 'गांव में रहने वाले लोग शहरी आबादी की तुलना में परंपरागत सोच वाले होते हैं। उन्हें रियल एस्टेट बूम या शेयर बाजार में आने वाले उछाल से बहुत अधिक मतलब नहीं होता। इसके अलावा ग्रामीण आबादी की आय के पैटर्न में भी बदलाव दर्ज किया जा रहा है। भारत की ग्रामीण आबादी अपनी आय का अधिक से अधिक हिस्सा बचत करने में सफल है क्योंंकि अब तक वे टैक्स ब्रेकेट में शामिल नहीं हैं।Ó करीब एक दशक से कंज्यूमर फाइनेंस कारोबार कर रहे एम किशोर कहते हैं, 'कंज्यूमर फाइनेंस का मतलब एक निश्चित ग्राहक वर्ग से बिजनेस करना नहीं है। कंपनियों को अब प्रतियोगिता का सामना करने के लिए नए तरीके ढूंढने होंगे। मोबाइल फाइनेंस, फर्नीचर फाइनेंस और रियल एस्टेट डेवलपर्स से संबंध बनाकर हाउस होल्ड गुड्स के लिए फाइनेंस उपलब्ध कराना एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। ऐसा करने में कंज्यूमर फाइनेंस कंपनियों को रीटेल बैंकिंग की तरह प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा।Ó सस्ते दर पर लोन उपलब्ध कराना और ग्राहक आधार बढ़ाना जहां हमेशा से कंपनियों के लिए आकर्षक विकल्प रहा है, वहीं राजीव जैन कहते हैं कि अब रिस्क एसेसमेंट और नियामक की भूमिका पर ध्यान देना जरूरी हो गया है। तकनीक के नए माध्यम की मदद से अब कंपनियां ग्राहकों का पूरा बैकग्राउंड चेक कर उन्हें लोन देने या नहीं देने लायक घोषित करने का फैसला कर रही हैं।

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