आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों के नतीजे उत्साह पैदा करने में नाकाम रहे हैं। उम्मीद की किरण तलाशे नहीं मिल रही और भविष्य में भी सुधार के खास लक्षण नजर नहीं आ रहे...
आईटी कंपनियों की ओर से तिमाही और मार्च 2009 को खत्म साल के लिए अब तक घोषित नतीजों ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि मौजूदा मंदी लंबी अवधि में भी इस सेक्टर के प्रदर्शन पर अपना साया बरकरार रखेगी। तिमाही आंकड़ों का एलान करने वाली ज्यादातर आईटी कंपनियों ने पिछली तिमाही के आधार पर आमदनी और मुनाफे में कम बढ़त या गिरावट दर्ज कराई है। बाजार के ज्यादातर खिलाडिय़ों ने कमोबेश इसे स्वीकार कर लिया था लेकिन कुछ शीर्ष कंपनियों का कमजोर गाइडेंस देना एक बड़ी निराशा लेकर आया है। हालांकि, शीर्ष आईटी कंपनियों ने कारोबारी साल 2008 के मुकाबले वित्त वर्ष 2009 में बेहतर प्रदर्शन दिखाया और उनके शेयर बेहतर वैल्यूएशन पर उपलब्ध भी हैं लेकिन इसके बावजूद मध्य अवधि के हिसाब से रणनीति बनाने वाले निवेशकों को आईटी सेक्टर से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जा रही है।
कुछ छोटी आईटी कंपनियों के अलावा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल टेक्नोलॉजीज जैसे चार बड़े आईटी खिलाडिय़ों ने अब तक मार्च 2009 के नतीजे घोषित किए हैं। एचसीएल टेक को छोड़कर शेष कंपनियों ने साल के सभी आंकड़े पेश किए। एचसीएल का साल जून तिमाही में खत्म होता है। ये चारों कंपनियां मिलकर देश में सूचीबद्ध आईटी कंपनियों की कुल आमदनी का करीब दो-तिहाई हिस्सा रखती हैं। कारोबारी साल 2009 के लिए इंफोसिस और विप्रो ने चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक हालात के बावजूद कारोबारी साल 2008 की तुलना में शुद्ध मुनाफे से जुड़ी बढ़त दर में सुधार दर्ज कराया है। टीसीएस बिक्री में जहां बढ़त बरकरार रखने में कामयाब रही वहीं वह शुद्ध मुनाफे में अपनी रफ्तार जारी नहीं रख सकी। उसके मुनाफे में 3 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है जबकि कारोबारी साल में यह इसमें 22 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया था। मुनाफे के मोर्चे पर नुकसान की मुख्य वजह टीसीएस की मुद्रा हेजिंग से जुड़े सौदे हैं। वित्त वर्ष 2009 में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद तिमाही दर तिमाही आधार पर मार्च तिमाही के दौरान मंदी का असर साफ देखा जा सकता है। मसलन, चारों आईटी कंपनियों की औसत बिक्री सपाट रही जबकि शुद्ध मुनाफे में 5 फीसदी की भारी कमी दर्ज की गई है।
नए ग्राहकों का जुडऩा भी कम रहा जो बैंकिंग और फाइनेंस, टेलीकॉम तथा ऑटोमोबाइल समेत कुछ सेगमेंट में उठापटक की कहानी कहता है। इसके अलावा आमदनी में बड़े ग्राहकों की हिस्सेदारी भी बीती दो तिमाहियों से गिर रही है। आईटी वेंडर शीर्ष ग्राहकों के बजट में ठहराव देख रहे हैं। इसका यह मतलब भी हुआ कि आमदनी का बड़ा हिस्सा छोटे ग्राहकों की बड़ी संख्या पर निर्भर करेगा। आमदनी में यह विभाजन रियलाइजेशन पर चोट कर सकता है क्योंकि छोटे ग्राहकों के समूह के मोर्चे पर छोटे वेंडरों से ज्यादा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।
इसके अलावा सेलिंग और मार्केटिंग खर्च भी बढ़ सकता है। यह होना तय है क्योंकि कंपनियां मंदी में मांग बढ़ाने के लिए बिक्री से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ाएंगी। मसलन, टीसीएस के लिए बिक्री के मुकाबले सेलिंग और एडमिनिस्टे्रशन संबंधी खर्च मार्च तिमाही में करीब 200 बेसिस अंक बढ़ा है। इससे मार्जिन पर दबाव और बढ़ेगा।
हालांकि, इस बीच उम्मीद की किरण यह है कि आईटी वेंडरों ने ऑफशोरिंग पर फोकस बढ़ा दिया है। टीसीएस ने मार्च तिमाही में ऑफशोर परियोजनाओं में हिस्सेदारी 400 बेसिस अंक बढ़ी है। वेंडर तय खर्च वाली परियोजनाओं पर भी गौर कर रहे हैं जो बेहतर आमदनी और समय आधारित भुगतान प्रणाली की तुलना में रियलाइजेशन बढ़ाने का काम करता है।
हालांकि, ये सकारात्मक कदम समूचे प्रदर्शन में बड़ा अंतर नहीं पैदा कर सकेंगे, कम से कम निकट भविष्य के लिए तो ऐसा कहा ही जा सकता है। कंपनियों ने कारोबार में गिरावट का संकेत दिया है। इसके अलावा उन्होंने प्राइसिंग के दबाव, नई परियोजनाओं में देरी और अगली कुछ तिमाहियों के लिए मौजूदा अनुबंधों पर दोबारा बातचीत का अंदाजा भी देना मुनासिब समझा। ये सभी चीजें सेक्टर में जल्द रिकवरी होने की उम्मीदों पर पानी फेरती हैं।
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